Wednesday 7 November, 2007

प्रधानमंत्री से बड़ा है सचिन का दर्द

पिछले दिनों टीवी चैनलों पर एक लाइन खूब सुनी गयी -"फिर छलका मनमोहन का दर्द". परमाणु करार पर गतिरोध और गठबंधन की राजनीति को लेकर प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों कई बयान दी जिन्हें उनकी पीडा से जोडा गया। लेकिन यह दर्द इतनी ही महत्ता रखता था कि महज कुछ बुलेटिनों की सुर्ख़ियों में रह गया या फिर दो चार मिनट की खबर इस पर बन सकी।

यह कप्तानी इनकार से करने के पीछे छिपा सचिन का दर्द तो था नहीं जिसके लिए विशेष कार्यक्रम दिखाए जाएँ या समाचार चैनलों के कीमती घंटे उस पर खर्च किये जाएँ। सचिन ने कप्तानी से इनकार किया उसके ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संघवाद की अवधारणा पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा था कि एक दल का शासन ही लोकतंत्र के हित में है।

यह राष्ट्रीय राजनीति पर देश के सबसे बडे नेता का एक अंतर्राष्ट्रीय मंच से दिया गया बयान था। इससे पहले भी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मंचों से वह बोलते रहे। जिसे टेलीविजन २-४ मिनट का समय मिलता रहा। गिने चुने ही विशेष कार्यक्रम इस पर आये होंगे। यहाँ डीडी न्यूज को अपवाद माना जा सकता है जिसके लिए सरकारी खबरें पहली प्राथमिकता रहती है।

लेकिन सचिन का अब का इनकार हो या वर्षों पहले टेनिस एल्बो में उठा दर्द। मीडिया के लिए उसे कवर करना सबसे जरूरी रहा। न सिर्फ चैनलों ने घंटो का समय दिया बल्कि अखबारों के लीड स्पेस में भी इसकी खासी जगह बनी रही।

प्रधानमंत्री के हालिया बयान को सबसे ज्यादा समय दिया सहारा ग्रुप के चैनल 'समय' ने। इसने कुल ११ मिनट का समय दिया था। इसी चैनल पर अगले दिन सचिन के लिए खर्च समय को देखें तो वह ज्यादा ही (13 मिनट) है। अन्य चैनलों पर प्रधानमंत्री के बयान को औसतन २ से ५ मिनट का समय मिला जबकि सचिन सचिन के इनकार की खबर को औसतन आधे घंटे का समय दिया गया।

तो अब किसी को यह मानने में हर्ज नहीं होना चाहिए कि इस देश में सचिन का दर्द प्रधानमंत्री के दर्द से बढ़ कर है।

2 comments:

आनंद said...

समालोचक ही, कबीरदास जी ने निंदक नियरे... वाला दोहा आपके लिए ही लिखा है। :-) आप बिना पानी, साबुन के सफ़ाई में लगे रहिए, हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही लिखा है।बधाई।